Sunday 15 June 2014

न बदमाश - न लुच्चा

अक्सर चंचल और शोख बच्चों को बदमाश कह दिया जाता है। बहुत सारे कारणों से बच्चे बदमाश नहीं हो सकते। बदमाश फारसी भाषा का शब्द है जो दो अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है 'बद' और 'मआश' (या माश)। बद का अर्थ है खराब या बुरा। यह शब्द बहुत से शब्दों के पहले लगता है जैसे जिसकी नीयत खराब हो वह बदनीयत, जिसका चाल-चलन खराब हो वह बदकार और जिसकी किस्मत खराब हो वह बदकिस्मत आदि। माश या मआश का अर्थ है आजीविका या रोजी-रोटी का साधन। अक्सर मिलने पर काम-धन्धे के बारे में पूछ लिया जाता है कि 'आपका जरिया-ए-मआश क्या है?' लिहाजा बदमाश का अर्थ वह आदमी है जो ग़लत या अनैतिक तरीकों से आजीविका चलाता हो। इस लिहाज से छोटे और मासूम बच्चे कभी बदमाश हो ही नहीं सकते। बदमाश उन्हें भी नहीं कहा सकता जो लड़कियां छेड़ते हैं, या स्कूल-कॉलेज में हुड़दंग करते हैं।
इसके साथ ही 'बदमाशी' करने वाले बच्चों को शैतान भी कहते हैं। देखा जाता है कि अक्सर मां-बाप अपने साल-छह महीने के बच्चों की शरारतों से तंग आकर शिकायत करते हैं- 'आजकल यह बहुत शैतान हो गया है...'  इस्लाम के अनुसार शैतान एक फरिश्ता ही था जिसने अल्लाह की आज्ञा का उल्लंघन किया, इस वजह से उसका बहिष्कार किया गया, तब से वह लोगों को पाप करने की ओर प्रवृत्त करता है। यानी सभी बुरे काम और पाप करवाना शैतान का काम है, जिसके लिए शब्द है कार-ए-शैतानी जो बाद में बिगड़कर कारस्तानी बन गया। सार यह कि भगवान के समकक्ष ताकत रखने वाली कोई दूसरी शक्ति जो इंसान से भगवान की इच्छा के विरुद्ध पाप करवाती है। इसके बाद भी क्या बच्चे शैतान हैं? क्या उनकी मासूम सी जिद्द और नादानियां शैतानी हैं?
अब इसी रौशनी में कारस्तानी को भी ही देख लें। उर्दू का शब्दकोश तो इसे शामिल ही नहीं करता पर हिन्दी में इसका अर्थ है, साजिश या चालबाजी। जोकि सही नहीं है क्योंकि कार-ए-शैतानी को एकसाथ करने से कारस्तानी बन ही नहीं सकता और अर्थ के लिहाज से भी यह मूल अर्थ से कोसों दूर है।
बदमाश का एक और रिस्तेदार शब्द है- लुच्चा। यथा लुच्चा-बदमाश। अर्थ के लिहाज से इन दोनों शब्दों का कोई मेल नहीं है, क्योंकि लुच्चे का अर्थ शब्दकोश के अनुसार है- बदमाश, शोहदा, कमीना, दुराचारी है पर आम बोलचाल में लुच्चे का अर्थ लिया जाता है- गंदी और अश्लील बातें या इशारे करने वाला। राजस्थानी भाषा में तो अक्सर अश्लील बातें करने वाले के बारे में कहा जाता है- यह बहुत लुच्ची-लुच्ची बातें करता है...। जबकि यह दोनों ही अर्थ ग़लत हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार लुच्चा शब्द संस्कृत के लोचन शब्द से बना है। यानी लोचन से काम लेने वाला, औरतों को देखने या घूरने वाला हो गया लुच्चा। अंग्रेजी में इस हरकत को स्टेअर (Stare) कहते हैं लेकिन लुच्चे के संदर्भ में सही शब्द है ओगॅल (Ogle)। असल में यह तुर्की भाषा के शब्द लुच से बना है जिसका अर्थ है- नंगा, लम्पट और भैंगा। हिन्दूस्तान में आकर लोचन और भैंगा पास-पास हो गए तो नया शब्द बना लुचपना और लुचपना करने वाला लुच्चा।

Saturday 14 June 2014

धणी खम्मा - घणी खम्मा

राजस्थान में अभिवादन के लिए बहुत ही प्रचलित वाक्य है- खम्मा घणी। इसके जवाब में सामने वाला भी घणी घणी खम्मा कह देता है। इसकी देखा-देखी आजकल टीवी सीरिअल और फिल्मों में अभिवादन के लिए घणी खम्मा का प्रयोग किया जाता है जिसका जवाब सलामुन आलैकुम की तर्ज पर वालेकुम अस्सलाम यानी खम्मा घणी दिया जाता है। यह सीरिअल और फिल्मों में तो अज्ञानता की वजह से चल सकता है पर आश्चर्य तब होता है जब पढ़े लिखे लोग भी घणी खम्मा कह कर अभिवादन करते देखे-सुने जा सकते हैं। इतना ही नहीं रामदेव जी के बहुत सारे भजनों में ये शब्द बार-बार इन्हीं अर्थों में आते हैं। हद तो तब हो जाती है जब लोग अपने वाहनों पर बिना इसका अर्थ जाने यह लिखकर घूमते हैं- ''बाबै नै घणी घणी खम्मा"
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह कितना गलत इस्तेमाल है। दरअसल देवनागरी में 'ध' और 'घ' दिखने में लगभग एक जैसे हैं इसलिए अकसर लोग धोखा खा जाते हैं। यही वजह है कि राजस्थानी के शब्द धणी (मालिक, पति) को घणी (ज्यादा, बहुत) पढ़ते और बोलते हैं। इस अज्ञानता की वजह से आजकल पढ़े-लिखे लोग भी कमअक्ली कर बैठते हैं।
इसके सही इस्तेमाल है 'धणी खम्मा' या 'खम्मा धणी'। मूलतः यह दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है धणी जिसका अर्थ है मालिक या पति, और दूसरा शब्द है खम्मा जिसका अर्थ है क्षमा। दरअसल खम्मा क्षमा का ही अपभ्रंस है जो क्षेत्रीय भाषाओं में आकर क्षमा से खमा या खम्मा बन गया, ठीक वैसे ही जैसे क्षेत्र से खेत और क्षत्री से खत्री बने हैं। कुल शब्द का मतलब है मालिक क्षमा करें। इसके लिए अंग्रेजी का एक वाक्य एक्सक्यूज मी बिलकुल सटीक बैठता है। अदब और सभ्यता के लिहाज से कुछ भी कहने से पहले या किसी बातचीत के बीच में बोलने से पहले एक्सक्यूज मी, माफ़ कीजिए या क्षमा करें जैसे वाक्य बोले जाते हैं। राजस्थान में आज भी बड़े रसूख वाले लोगों, मंत्रियों और अधिकारियों को हुकुम, धणी या मायत कहने का चलन है। जैसे मुगलिया दरबारों में कुछ भी कहने से पहले पूछा जाता था कि- 'जान की अमान पाऊँ तो अर्ज करूँ...।' ठीक इसी तरह राजपूताना में भी राजा-महाराजाओं के दरबार में कुछ बोलने से पहले 'धणी खम्मा या खम्मा धणी' से बात आरम्भ करते थे।
इन अर्थों की रौशनी में 'बाबै नै घणी घणी खम्मा' कितना हास्यस्पद  लगता है? किसी को प्रणाम या नमस्कार के लिए भी घणी खम्मा का प्रयोग कितना उचित है? अब पता नहीं कब और कैसे यह वाक्य अभिवादन में बदल गया।
अभिवादन के लिए एक और शब्द है 'मुजरा'। अरबी भाषा के इस शब्द का हिन्दी फिल्मों ने बहुत बेड़ा गर्क किया है। जिसकी वजह से हमने इसका एक ही अर्थ समझा है- कोठों पर तवायफों द्वारा किए जाने वाले नाच-गाने को मुजरा कहते हैं। दरअसल झुककर अभिवादन को ही मुजरा कहा जाता है, राजस्थानी भाषा में यह शब्द आज भी इसी संदर्भ में इस्तेमाल होता है। इस पर राजस्थानी में बहुत से गाने भी प्रचलित हैं। इस शब्द के तवायफों से जुडऩे का कारण आसानी से समझा जा सकता है। एक जमाना था जब बड़े-बड़े नवाब और राजा-महाराजा अपने बच्चों को तमीज, तहजीब और आदाब सिखाने के लिए तवायफों के यहां भेजते थे। तवायफें आदाब और तौर-तरीके सिखाती और नाच-गाने से पहले लगभग दोहरा होने की हद तक झुककर सलाम करती थी। यह सलाम या अभिवाद ही मुजरा है, जिसकी वजह से उनके नाच-गाने को मुजरा समझ लिया गया।
मुजरे का एक अर्थ और भी है- किसी को दिए जाने वाले धन में से कटौती करना। राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के वो लोग जो खेती हिस्से या ठेके पर करवाते हैं वे इसे आसानी से समझ लेंगे क्योंकि उनका वास्ता मुजारे से पड़ा है। अपनी खेती को उपज के आधे, चौथाई या पांचवें हिस्से पर ठेके दिया जाना यहां आम बात है। जो आदमी इस तरह जमीन लेता है उसके बदले जो धन देता है उसमें से मुजरा काट कर जमीन मालिक को देता है उसे इसीलिए मुजारा भी कहते हैं। आम लोग नें इसे भी मजदूर को बिगड़ा हुआ रूप मजूर माना और फिर मुजारा मान लिया।

Friday 13 June 2014

जुगाड़ की भाषा या भाषा का जुगाड़

भाषा के मामले में दुनिया का हर आदमी जुगाड़ी है। वह शब्दों का जुगाड़ मुख-सुख के लिए ढूंढ ही लेता है। जैसे बहुत से पंजाबी अदरक को अदकर कहते हैं, कीचड़ को चिक्कड़ और चाकू को काचू बोलते हैं। इसी तरह उत्तरप्रदेश के बहुत लोग लखनऊ को नखलऊ कहते सुने जा सकते हैं। जब बात जुगाड़ की आ गई है तो बात करते हैं वर्कशॉप और वाहनों से संबंधित उन शब्दों की जिनके जुगाड़ मुख-सुख की वजह से तलाश लिए गए हैं।
इंजन नम्बर और चेसिस नम्बर के बारे में हम सबने सुना रखा है। उच्चारण व लिखने की दृष्टि से इंजन को एÓन्जिन बोला और लिखा जाना चाहिए पर आजकल इंजन या इंजिन हमें स्वीकार हो गया है। दूसरा शब्द है चेसिस। जिसे कुछ लोग चैसी या चेसिज या चेचिस भी कहते हैं। इस शब्द का सही उच्चरण है शैसे या शैस्इ। यह शब्द बोलने और लिखने दोनों के लिहाज से आजकल नजर ही नहीं आता। जब वर्कशॉप खुली हुई है तो कुछ और शब्दों पर भी बात भी कर लेते हैं। एक औजार है-जैक। यह वह औजार है जिससे वाहनों के टायर आदि बदलने के लिए वाहन को उपर उठाया जाता है। हम लोग इसे बहुत ही जल्दी में जेक बोलते हैं। जबकि इसे धीरे से खींचकर जैअ्क बोलना चाहिए। एक ही स्पैंलिग के साथ इस जैक के बहुत सारे अर्थ हैं जैसे- नाविक, मल्लाह, मजदूर, नौकर, गुर्गा, लौंडा, गुलाम, छोटा झंडा और कटहल आदि। ताश में भी जो गुलाम होता उसे भी जैक ही कहते हैं।
एक और बहुत ही प्रचलित शब्द है टोचन। यह स्टील, जूट या पलास्टिक की रस्सी होती है जिसकी मदद से एक खराब वाहन को दूसरे वाहन से बांध कर खींचकर ले जाया जाता है। सही शब्द है टो-चेन या टोइंग चेन। यह दो शब्दों से मिलकर बना है। टो यानी खींचना चेन यानी धातु की रस्सी। अब यह स्त्रीलिंग टो-चेन कब पुल्ंिलग टोचन हो गया पता ही नहीं लगा। हम में से बहुत से लोग टोचन को अंग्रेजी का शब्द नहीं मानकर जुगाड़ की तरह का एक जुगाड़ी शब्द ही समझते हैं। ऐसा समझने के पीछे एक तर्क भी है। हमारे मिस्त्री बहुत से औजारों और पुर्जों का नाम उनकी शक्ल देखकर रखते हैं। ये लोग रिचेट को कुत्ता, टेपेट को चिड़ी, इगनीशिअन कॉयल को घुग्गी, ओपनएंड स्पेनर को चाबी, सॉकेट को गोटी, प्लायर्स को जमूरा और नोज प्लायर्स को चूहा प्लास कहते हैं। हद यह कि साइकिल के गिअर टीथ खराब होने पर हम कहते हैं- इसके कुत्ते फेल हो गए। अब तो यह एक मुहावरा बन चुका है, कमजोर, आलसी और बड़बोले लोगों के लिए इसे अकसर प्रयोग में लाया जाता है।
अंत में बात करते दो और शब्दों की, पहला है बबलिंग। आमतौर पर कोई वाहन अगर उछल-उछल कर चल रहा हो या उसका टायर डगमगा रहा हो तो उसे बबलिंग कहते हैं। इसका सही उच्चारण है बोबलिंग या वैंबलिंग। दूसरा शब्द है-जैनुअन। जिसे हम जैनियन या जीनाइन भी कहते हैं। ऐसा नहीं है कि हम विदेशी भाषाओं के साथ ही ऐसा व्यवहार करते हैं, हम आपनी मातृ भाषा की भी इतनी ही इज्जत करते हैं।