tag:blogger.com,1999:blog-17803803627885151682024-03-14T06:09:56.088-07:00Shabd BanjareAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-85237614787162669632015-02-13T09:52:00.000-08:002015-02-13T09:52:08.715-08:00काली सब्जी, सूखी तरकारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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फारसी भाषा में एक शब्द है सब्ज: या सब्जा, जिसका मतलब है हरा रंग, हरियाली या हरी घास। इसी शब्द से बना है सब्जी। जिसका शब्दकोश में मतलब है- साग-भाजी, हरे पत्ते और तरकारी आदि। सब्ज यानी हरे रंग से संबंधित होने की वजह से सब्जी का मूल अर्थ हरे पत्तों या हरी सब्जी से ही था, मगर वर्तमान में हम आलू, सफेद मूली और फूल गोभी, पीले पेठे, लाल टमाटर और गाजर तथा बैंगनी बैंगन आदि को भी सब्जी ही कहते हैं। हद तो यह है कि सब्जी को हरी सब्जी भी कहते हैं, यह कुछ ऐसा ही है जैसे काले को काला श्याम कहें।<br />सब्जी के लिए हिन्दी में एक शब्द है साग। यह शब्द संस्कृत के शाक: या शाकम् से बना है जिसका अर्थ है भोजन के लिए उपयोग में आनी वाली वनस्पतियां, हरे पत्ते या कंद, मूल, फल आदि। इसे कहीं-कहीं साक या शाक भी कहते हैं। यही वजह है कि वेजीटेरिअन को शाकाहारी कहा जाता है। साग के साथ एक और शब्द आता है भाजी जैसे सागभाजी। भाजी पकी हुई सब्जी को कहते हैं जैसे पाव-भाजी। प्रसंगवश यह भी कि मराठी में बेसन के पकोड़ों को भजिया कहा जाता है। अब भजिये का बीकानेरी भुजिया से क्या महज तले जाने का तक का ही संबंध है? <br />सब्जी के साथ एक और शब्द जुड़ा रहता है तरकारी। ज्ञात रहे सब्जी और तरकारी दोनों शब्द ही फारसी के हैं जो उर्दू से होते हुए हिन्दी में आए हैं। हालांकि तरकारी और सब्जी का एक ही अर्थ समझा जाता है, यानी सागभाजी। अर्थ एक होने के बावजूद दोनों में बहुत अंतर है। $फारसी भाषा में दो शब्द हैं पहला है तर: यानी तरा जिसका मतलब है सागभाजी या तरकारी। दूसरा शब्द है तर जिसका मतलब है गीला, एकदम ताजा और संतुष्ट। जाहिर है पानी से भीगा होना, एकदम तर-औ-ताजा होना ही साग-सब्जी की खासियत है। माना जाता है कि यह तर शब्द फारसी में संस्कृत की तृप् धातु से बना है जिससे बने तृप्त-परितृप्त शब्द का अर्थ भी यही हैं यानी प्रसन्न और संतुष्ट। <br />यह तो तय है कि तरकारी का तर होना बहुत जरूरी है पर पता नहीं हम क्यों सूखी सब्जी को भी तरकारी ही कहते हैं। इस बात की पुष्टि के लिए तरकारी से निकले दो और शब्दों का जिक्र करते हैं यानी तरी और करी का। तरी सब्जी के झोल जिसे कहीं-कहीं रसा भी कहा जाता है, को कहते हैं और करी से अर्थ है मसालों का शोरबा या झोल। इसमें कभी-कभी अण्डे या मांस भी डाला जाता है। अगर इसमें सिर्फ बेसन डाल लिया जाए तो यह करी से कढ़ी बन जाएगी। करी में थोड़ी अंग्रेजियत झलकती है जबकि कढ़ी में ठेठ देशीपन है। तभी तो हम आलू या प्याज की कढ़ी बनाते हैं और अॅग की करी।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-129924985976350832015-02-13T09:47:00.002-08:002015-10-13T05:43:27.867-07:00तंदूर, चपातियां और मीनार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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तंदूर का इतिहास करीब चार हज़ार साल से ज्यादा पुराना है। दुनिया के पहले तंदूर के सबूत हड़प्पा-मुअन-जो-दड़ो की खुदाई में मिले थे। तंदूर मूलत: हिब्रू भाषा का शब्द है, इसे अरबी में तनूर या तन्नूर कहते हैं जो $फारसी भाषा में जाकर यह तंदूर हो गया। तनूर का मूल सेमिटिक धातु के न्रू है, जिसमें चमक, रोशनी, उजाले का भाव है। इससे ही बना हिब्रू का नार शब्द जिसका मतलब हुआ आग। यही न्रू अरबी में नूर बना जिसका अर्थ है प्रकाश या चमक। इसी नूर में त उपसर्ग लगा कर तनूर बना। हिन्दी और उर्दू में जिसे तंदूर कहते हैं उसे इराक के कुछ हिस्सों में इसे तिन्नुरू, अज़रबैजान में तंदिर, आर्मीनिया में तोनीर और जार्जिया में इसे तोन कहते हैं।<br />
जब आग और रोशनी जिक्र आ गया तो एक और शब्द की बात करलें। न्रू, नूर और नार से एक और शब्द बना है मीनार। जैसे दिल्ली में कुतबुद्दीन ऐबक के नाम पर बनी विश्वप्रसिद्ध कुतुबमीनार। मीनार का आमतौर अर्थ लिया जाता है, बहुत ऊँचा खम्बा या इमारत। हिन्दी में इसके लिए शब्द है स्तंभ या स्तूप। हालांकि मीनार के लिए सही शब्द है प्रकाश-स्तंभ। अरबी मूल का यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। म और नार। नार का मतलब आपको बताया ही है आग या रोशनी। पुराने समय में राहगीरों के लिए ऊंचे स्तूपों या स्तंभों पर रात में आग जला कर रखी जाती थी ताकि रात में सफर करने वाले उसे देखकर सही दिशा में आ सकें। अरबी भाषा का एक कानून है कि कुछ शब्दों के आगे म उपसर्ग लगा देने से वह स्थान का अर्थ देने लग जाता है, जैसे $कत्ल के आगे म लगाने से बनता है मक़्तल यानि वह स्थान जहां $कत्ल किए जाते हैं। इसी तरह नार का अर्थ है आग और मनार वह जगह जहां आग जलाई जाती है। यानी सही शब्द भी मनार न कि मीनार। इसका बहुवचन भी मीनारें या मनारे नहीं बल्कि मनाइर होता है। हिब्रू में चिराग, लैम्प या दीये को मनोरा कहते हैं जो अरबी में जाकर हुआ मनार।<br />
हमारे यहां चपाती का मतलब तवे की पतली रोटी होता है। मानक हिंदी कोश के अनुसार संस्कृत में इसे चर्पटी कहा जाता है, जिसमें चर्पट यानी चपत निहित है। इस अर्थ में चकले पर बेलन से बेल कर बनाई गई रोटी की बजाय हाथ से चपत मार बनाई गई रोटी को चपाती कहते हैं। इस लिहाज से तंदूरी रोटी या बाजरे की रोटी ही चपाती की श्रेणी में आती हैं। <br />
रोटी के बारे में हमारे कोश कुछ भी नहीं बोलते, पर कुछ इसे संस्कृत के रोटि और प्राकृत रोट्ट से जोड़ते हैं। रोट्ट रोटी का भारी-भरकम रूप है, जिसे आप डबल रोटी (दूगनी रोटी) या खमीर उठाकर बनाई गई रोटी भी कह सकते हैं। इसे पाव-रोटी कहने वालों के लिए जानकारी है कि पुर्तगाली भाषा में रोटी को ही पाव कहते हैं। सवाल है फिर बेल कर बनाई जाने वाली रोटी को क्या कहेंगे? इस रोटी को तवे पर सेक कर फुलाया जाता है इसलिए इसे फुलका कहा जाता है। अगर आकार में यह छोटा है तो फुलकी भी कह देते हैं। तवे पर फुलाने के कारण फुलका और तेल में तलकर फुलाने से यह पूरी या पूड़ी बन जाती है। अगर रोटी को दो-तीन परतों में बना लिया जाए तथा तवे पर ही तेल या घी पिलाया जाए तो उसे परांठा कहेंगे।<br /><br />(आलेख में कुछ जानकारियां श्री अजित वडनेरकर के ब्लॉग shabdavali.blogspot.in से साभार ली गयी हैं।)</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-57584768974137651052015-02-03T08:20:00.003-08:002015-02-03T08:20:37.101-08:00बटर-चिकन बनाम नवनीत-ताम्रचूड़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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लगभग सारे मांसाहारी पदार्थों के नाम या तो अंग्रेजी में हैं या फिर अरबी, फारसी और तुर्की भाषा में हैं। हालांकि उत्तर भारतीयों ने उन्हें अपने ढ़ंग से मुर्गा-शुर्गा, कुक्क्ड़-सुक्क्ड़, बोटी-सोटी या लाल मांस कह कर कुछ देशी टच दिया है। आश्चर्य होता है कि हिन्दी वाले यहां कैसे मात खा गए? इसकी एक वजह जो मुझे समझ आई, वो आपसे साझा करता हूं। कल्पना करें, जब किसी होटल के मेन्यू में 'बटर-चिकन' की जगह आपको 'नवनीत-ताम्रचूड़' या 'मक्खन-कुक्कुट' लिखा हुआ मिले, तब आपको कैसा लगेगा? मुर्ग फारसी और चिकन अंग्रेजी भाषा के शब्द हैं, इसे हिन्दी में कुक्कुट या ताम्रचूड़ कहते हैं। इसी तरह बटर को नवनीत या मक्खन कहा जाता है। हालांकि ज्यादातर भारतीय नवनीत का अर्थ नए से लगाते हैं, यहां तक कि वे लोग भी जिनका नाम नवनीत है। जबकि हमारे यहां मक्खनसिंह या मक्खनलाल नाम बिना हिचकिचाहट रखे जाते हैं।<br />मुझे लगता है मांसाहारी लोग शेक्सपिअर के उस कथन में ज्यादा यकीन रखते हैं कि-'नाम में क्या रखा है।' सच भी है नाम में रखा भी क्या है, जब बात स्वाद की हो। अगर नाम की बात करें तो एक बेहद लोकप्रिय व्यंजन है मुर्ग-मुसल्लम, जिसका नाम नहीं खाने वाले भी जानते हैं। इसे भारत, पाकिस्तान के अलावा लगभग सारे दक्षिण एशिया में मुर्ग-मुसल्लम बोला और लिखा जाता है। मुर्ग तो आप जानते ही हैं मुर्गे को कहते हैं और मुसल्लम का अर्थ है समग्र, समुचा, अखण्ड। बात कुछ हज्म नहीं होती कि जिस मुर्गे के पंख उतार दिए, पंजे और गर्दन काट दी वह मुसल्लम कैसे हो सकता है? असल में यह मुसल्लम नहीं मुसन्नम है। अरबी भाषा में सम्न मतलब है तेल या घी होता है, और मुसम्न का अर्थ हो गया तेल या घी में गहरा तला हुआ। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि यह मुसम्मन जिसका मतलब होता है मोटा-ताजा चर्बी चढ़ा हुआ। यह बात इसलिए स्वीकार नहीं होती कि सारे मुर्गे तो मोटे और चर्बीले नहीं हो सकते। इसी तरह एक और आम-फहम मांसाहारी खाना है बिरयानी। पहली बात तो यह कि इसका नाम बिरयानी नहीं बिर्यानी है। फारसी में बिर्यां का अर्थ है भुना हुआ। इस व्यंजन में चावलों में भुना हुआ गोश्त डाला जाता है इसलिए इस पुलाव को बिर्यानी कहते हैं। <br />कुछ और बहुत ही आम-फहम शब्द हैं, जो हर तीसरे मांसाहारी व्यंजन के साथ जुड़े रहते हैं जैसे-चिकन रोगन जोश, मटन रोगन जोश और शाही रोगन जोश। इनमें दो शब्द कॉमन हैं- रोगन और जोश। पहली बात तो यह कि यह रोगन नहीं रौग़न है, जो अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है घी या तेल। आपने सुना हो बादाम रौग़न, यानी बादाम का तेल। दूसरा शब्द है जोश इसका मतलब गोश्त ही है उत्साह नहीं। ऐसा ही एक मांस का प्रसिद्ध व्यंजन है हलीम। दरअसल इसका सही उच्चारण है लहीम। जिसका अरबी भाषा में अर्थ ही मांस है, जबकि हलीम का मतलब है सहनशील या गंभीर। कुछ लोग यख्ऩी को भी एक व्यंजन मान लेते हैं, जबकि यह बिना मसाला डाले बनाया गया गोश्त का वह शोरबा(सूप) है जो अकसर मरीजों के लिए बनाया जाता है।<br />अगर बात करें कबाब की तो यह कई प्रकार के होते हैं जैसे- क़ाकोरी कबाब, शामी कबाब और टुण्डा कबाब आदि। बहुत से खानेवाले कबाब का अर्थ ही मांस से लगाते हैं जबकि कबाब कीमे की तली हुई टिक्कियों या सीख पर सेकी हुई नलियों को कहते हैं। अब बात करते हैं उपरोक्त नामों के साथ कबाब के रिस्ते की। पहला है क़ाकोरी कबाब। क़ाकोरी बना है तुर्की भाषा के क़ाक़ शब्द से जिसका मतलब है सुखाया हुआ माँस। शामी कबाब का ताल्लुक शाम देश से है, जिसे आजकल सीरिया कहते हैं, वहां बनाया जाने वाला विशेष कबाब ही शामी कबाब है। कुछ लोगों का मानना है यह शामी नहीं सामी है जिसका अर्थ है श्रेष्ठ। तीसरा है टुण्डा कबाब जो एक हाथ वाले खानसामे हाजी मुराद अली के नाम जुड़ा है। कुछ शब्द और भी हैं जैसे- कोरमा, भुना हुआ मांस। कीमा कूटा हुआ मांस और कोफ्ता कूटे हुए मांस की गोलियां और अंत में यह भी कि हमारे यहां मटन से मुराद मांस या बकरे का गोश्त है, जबकि शब्दकोश के अनुसार मटन सिर्फ भेड़ का मांस होता है।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-47103708273445800342015-02-03T08:07:00.000-08:002015-02-03T08:07:03.493-08:00नाहार, निराहार और नाश्ता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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फारसी भाषा में एक शब्द है नहार जिसका अर्थ है दिन या दिवस। इसे ध्यान में रखते हुए दिन के पहले खाने को नहारी कहते हैं, जो आजकल बिगड़कर निहारी हो गया है। पुराने जमाने में जिस शोरबेदार गोश्त को खमीरी या रात की बची हुई रोटी के साथ खाया जाता था उसे नहारी कहते थे। यही वजह है कि आज भी शोरबे वाले गोश्त को नहारी या निहारी कहते हैं। फारसी भाषा में नाहार शब्द का अर्थ है सुबह से भूखा। जिसे राजस्थानी और पंजाबी में निरनैकाळजै कहते हैं। फारसी में यह शब्द संस्कृत के शब्द निर-आहार से गया है, जो समय के साथ निर-आहार, निराहार से वहां नाहार हो गया। <br />सुबह के इस पहले हल्के-फुल्के भोजन को नाश्ता भी कहा जाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उर्दू के सबसे प्रतिष्ठित शब्दकोश फर्रहंग-ए-अस्फिया के अनुसार नाश्ता सुबह के पहले भोजन को नहीं सुबह खाली पेट होने की स्थिति को कहते हैं। जैसे कहा जाता है कि मुझे थोड़ी भूख महसूस हो रही है, वैसे कहा जाता कि मुझे कुछ नाश्ता सा महसूस हो रहा है। अंग्रेजी में इसे ब्रेकफास्ट कहा जाता है जो दो शब्दों से बना है ब्रेक और फास्ट। अंग्रेजी में दो ब्रेक हैं, पहला है Brake जिसका अर्थ है- रोक या रोधक। यह ब्रेक वाहनों में लगा होता है। दूसरा है Break जिसका अर्थ है विराम या तोडऩा। इसका प्रयोग टीवी कार्यक्रमों में अंतराल के लिए आजकल बहुत प्रचलन में हैं। दूसरे अर्थ में है रिकॉड ब्रेक करना या तोडऩा। ब्रेक-फास्ट में भी यही ब्रेक इस्तेमाल होता है। अंग्रेजी में फास्ट (Fast) के भी दो अर्थ हैं, उपवास और द्रुत या तेज। ब्रेकफास्ट कुल अर्थ यह हुआ कि उपवास तोडऩा। रात्रि-भोजन के बाद सुबह के पहले भोजन के बीच एक लम्बा अंतराल आ जाता है, इसलिए उसे उपवास ही मान लिया जाता है और सुबह के पहले भोजन से वह उपवास तोड़ा जाता है इसलिए उसे ब्रेक-फास्ट कहते हैं। <br />हिन्दी में नाश्ते के लिए तीन-चार पर्याय हैं- जलपान, अल्पाहार, कलेवा और चायपानी। यह चारों ही शब्द सुबह के पहले भोजन का अर्थ नहीं देते। पहला शब्द लेते हैं जलपान। जल का अर्थ है पानी और यहां पान का अर्थ है पीना। जैसे धूम्रपान बीड़ी-सिगरेट पीना या मद्यपान- शराब पीना। इस अर्थ में पानी पी लिया तो नाश्ता हो गया। जलपान अतिथि को दिन में कभी भी करवाया जा सकता है। दूसरा शब्द है अल्पाहार। अल्प मतलब थोड़ा और आहार मतलब भोजन और दोनों का सामुहिक अर्थ है थोड़ा सा भोजन करना। यह भी दिन में किसी भी समय किया जा सकता है, कुछ लोग होते ही अल्पाहारी हैं। तीसरा शब्द है कलेवा। राजस्थानी में भी नाश्ते को कलेवा ही कहते हैं। इसका अर्थ भी थोड़ा सा कुछ खाना है, जो किसी भी समय खाया जा सकता न कि सुबह का पहला भोजन। चौथा शब्द है- चायपानी। हम अकसर थोड़ी सी भूख लगने पर या मेहमान के आने पर थोड़ा सा चाय-पानी कर लेते हैं। इस चाय और पानी में कुछ हल्के-भारी खाने के साथ चाय हो यह जरूरी नहीं है, यहां दूध, कोल्डड्रिंक, शरबत आदि कुछ भी हो सकता है। वैसे हम भारतीयों के बारे मशहूर है-एवरी टाइम इज टी टाइम। <br />अंग्रेजी में नाश्ते के लिए भारत में एक और शब्द प्रचलन में हैं-ब्रन्च। यह शब्द ब्रेकफास्ट और लन्च से मिलकर बना है। दरअसल ब्रन्च देरी से किया गया ब्रेकफास्ट या जल्दी किया गया लन्च है, न कि नाश्ता। आप शाम को चार-पांच बजे रखे गए ऐसे बहुत से कार्यक्रमों में आमन्त्रित रहे होंगे जहां आपको कार्यक्रम के बाद ब्रन्च का भी निवेदन किया गया होगा। परिभाषा के हिसाब से शाम का यह नाश्ता ब्रन्च की श्रेणी में नहीं आता। इस नीयम के आधार पर आपके लिए एक पहेली है। देर से किया गए दोपहर के भोजन (लन्च)और जल्दी किए गए रात्रि भोजन (डिनर) से मिलकर नया शब्द क्या बनेगा? जवाब मन ही मन में बोलें। प्रसंगवश यह भी कि सुबह का नाश्ता राजा की तरह, दोपहर का भोजन राजकुमार की तरह और रात का खाना भिखारी की तरह करना चाहिए। यानी सुबह का पहला भोजन रात के दस-बारह घन्टे बाद होता है इसलिए भरपेट एक राजा की तरह करना चाहिए, दोपहर का भोजन राजकुमार की तरह हल्का और चुन-चुनकर खाना चाहिए। रात का भोजन भिखारी तरह रूखा-सूखा और थोड़ा सा करना चाहिए।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-67436443821335396072015-01-05T09:21:00.001-08:002016-11-20T07:58:09.846-08:00 गाली जैसी ही गालियां<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मूलत: गालियां दो तरह की होती हैं। पहली जिन्हें हम श्लील कहते हैं, ये गालियां सामने वाले के हावभाव या गुणों को देख कर दी जाती हैं जैसे- कुत्ता, गधा, उल्लू या बन्दर आदि । दूसरे किस्म की गालियां जो अश्लील की श्रेणी में आती हैं वो हमारे तथाकथित सभ्य समाज का वो चेहरा है जो गुस्से की हवा चलते ही उघड़ जाता है । दरअसल ये गालियां पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था से उपजे 'मर्द' की दमित यौन-कुंठाएं हैं । सामाजिक जिम्मेदारियों और सभ्य लेखन की मजबूरियों के मद्देनजर यहां सिर्फ पहली किस्म की गालियों का ही जिक्र हो सकता है, सो वही कर लेते हैं।पहली गाली जो आपने निकाली भी है और सुनी भी है वो है बेवकूफ। कमअक्ली या ग़लतियां करने वाले को अक्सर बेवकूफ कहते हैं। वकूफ अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है रुकना या डटे रहना। बे-वकूफ वह होता है जो बिना रुके कोई भी काम करता है, जैसे लगातार बोलता है या खाता रहता है उसे बेवकूफ कहते हैं।<br />
एक और गाली है चुगद। कुछ लोग इसे दूसरी श्रेणी में भी रख लेते हैं, पर यह भी विशुद्ध सात्विक किस्म की ही गाली है। सही शब्द है चुग़्द। अक्सर हम गाली देते हुए मूर्ख आदमी को निरा चुग़्द कह देते हैं। इस शब्द का अर्थ उल्लू। उल्लुओं की कई किस्में हैं, उनमें सबसे छोटे उल्लू को चुग़्द कहते हैं। उल्लू से जुड़ी एक और गाली है- उल्लू का पट्ठा। हम पता नहीं क्यों इसे उल्लू का बेटा या बच्चा मान लेते हैं। दरअसल पट्ठे का मतलब है शिष्य या चेला खासतौर पर पहलवान बनने वाला शिष्य। इसके साथ ही एक और गाली है जो बिगड़कर दूसरी श्रेणी में चली गई । फारसी का शब्द है चूली, जिसका अर्थ है कायर, डरपोक, क्लीव या नामर्द। यह चूली व्यक्तिगत स्तर पर चूलिया हो गया और आगे जाकर यह क्या बना गया सब जानते ही हैं। <br />
सीधे तौर पर गधा तो गाली है कि पर एक और गाली है खरदिमाग। आमतौर हम समझते हैं खर यानी गधा और खर दिमाग माने गधे जैसे दिमाग वाला। फारसी में खर का गधे के अलावा एक और अर्थ है बड़ा। खरदिमाग यानी बड़े या ऊँचे दिमाग वाला, घमंडी। खर कई शब्दों के साथ पढ़ा-सुना होगा पर इस समय याद नहीं आएगा। ऐसा एक शब्द है- खरबूज। बूज कहते हैं मीठे को खर और बूज यानी बड़ा (आकार में) मीठा फल। साथ ही एक और शब्द है तरबूज। यानी वह मीठा फल तो तर हो, यानी पानी से भरपूर हो। लगे हाथ यह भी कि कुछ क्षेत्रों में तरबूज को हन्दवाना भी कहा जाता है जो पंजाबी में आकर दुहाणा हो गया और राजस्थानी में मतीरा। खर से एक शब्द है खरगोश। खर मतलब गधा। गोश का अर्थ है कान। फारसी में कहा जाता है कि गोश गुजार कर रहा हूं। यानी आपके कानों के लिए अर्ज है। खरगोश का अर्थ हुआ गधे जैसे कानों वाला।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-45506951986642638402015-01-04T08:52:00.002-08:002015-01-04T08:52:40.990-08:00शातिर और दबंग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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आम धारणा है कि भाषा को अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोगों ने बिगाड़ा है। सच्चाई इसके बिलकुल उल्ट है, भाषा की जो जड़ें तथा-कथित पढ़े-लिखे वर्ग ने खोदी हैं वैसी अनपढ़ तो कर ही नहीं सकता। हालांकि लेखकों, कवियों और शायरों से शुद्ध भाषा की उम्मीद नहीं रखी जाती उनके यहां तो नए विचार और कल्पना की उड़ान तो हो सकती है शुद्ध व्याकरण नहीं। लेकिन पत्रकार जो किसी भी लिखने वाले से ज्यादा पढ़ते और लिखते हैं, वे जब भाषा का जनजा निकालते हैं तो आश्चर्य होना स्वभाविक है। आज के मीडिया ने शब्दों के लिए अपने ही अर्थ घड़ लिए हैं, अकसर जिनका वास्तविक अर्थों से दूर-दूर तक कोई वास्ता तक नहीं होता। ऐसा ही दो शब्द है दबंग और शातिर। <br />शब्दकोश दबंग का अर्थ बताता है- जो किसी ने न दबे, निडर, बेधड़क, प्रभावशाली, दिलेर। अब इन अर्थों में कहां है गुण्डागर्दी या बदमाशी का भाव? आजकल के अखबार और टीवी दबंगों की दबंगाई के किस्से न जाने किन अर्थों में सुना और बता रहे हैं। आज से मात्र दस-बारह साल पहले तक दबंग एक सम्मानजनक और आदर योग्य शब्द था, पर जब से यह शब्द मीडिया के हत्थे चढ़ा है इसके अर्थ ही बदल गए। आज दबंग दो टके का गुण्डा बनकर रह गया है, जिसका काम अपने क्षेत्र में आतंक फैलाना भर रह गया है।<br />दूसरा शब्द है शातिर। इस शब्द को अक्सर शातिर चोर, शातिर बदमाश, शातिर लुटेरा जैसे अलंकारों के साथ पढ़ा-सुना होगा। पहली नजर में शातिर का अर्थ छटा हुआ या खतरनाक जैसा लगता है। ह$कीकत में शतरंज के खिलाड़ी को शातिर कहते हैं, जैसे गोल्फ खेलने वाले को गोल्फर और फुटबॉल खेलने वाले को फुटबॉलर। शातिर महज एक माहिर खिलाड़ी होता जो न तो खतरनाक है और न ही छटा हुआ। क्या विश्वानाथ आनंद या गैरी कास्परोव किसी भी तरह से खतरनाक लगते हैं। हद तो तब हो जाती है जब कहा जाता है कि चार शातिर पकड़े, उनसे तमंचा और स्मैक बरामद। कोई भी भाषा को जानकार बेहोश हो सकता है जब किसी समाचार-पत्र में यह पढ़े कि- 'बहुत शातिर होते हैं मच्छर...।' बीबीसी की हिन्दी सर्विस वाले तो इसके लिए सारी हदें ही लांघ गए। वो लिखते हैं- 'कौअे से भी शातिर होते हैं चिपांजी...।'<br />अरबी भाषा के इस शब्द के साथ डॉ. हरदेव बाहरी द्वारा सम्पादित हिन्दी के सबसे प्रतिष्ठित शब्दकोश ने भी वही किया जो आम आदमी करता आ रहा है। डॉ. बाहरी इसका अर्थ बताते हैं- परम धूर्त, काइयाँ और चालाक। हमारे भाषा-विज्ञानियों ने शतरंज के खिलाड़ी के लिए सही शब्द शातिर छोड़कर पतंगबाज की तर्ज पर एक नया शब्द घड़ लिया है- शतरंजबाज। इसके लिए एक कहावत याद आती है- कुँए में ही भांग पड़ी हुई है। अन्दाजा है कि पहली बार बहुत तेज दिमाग ठग या धोखेबाज अपराधी के लिए शातिर दिमाग अपराधी इस्तेमाल हुआ होगा। धीरे-धीरे दिमाग गायब हो गया रह गया महज शातिर अपराधी। बाद में अपराधी भी गायब हो गया और सिर्फ शातिर रह गया। इस तरह एक अच्छा-भला शतरंज का खिलाड़ी बन गया छटा हुआ अपराधी।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-17449580406664561992015-01-04T08:32:00.002-08:002015-01-04T08:32:35.051-08:00काँइयां और लीचड़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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गालियों का प्रचलन समाज में कब से प्रारम्भ हुआ और सबसे पहले किसने किसको गाली दी थी तथा सुनने वाले पर उसकी प्रतिक्रिया किस रूप में प्रकट हुई थी- यह शोध के लिए एक मजेदार विषय हो सकता है। मान्यता है कि गालियों का प्रादुर्भाव भाषा के विकास के साथ-साथ ही हुआ होगा। तीक्ष्ण, अप्रिय और अपमानित करने वाले शब्दों को 'गाली' माना गया है। शब्द-प्रहार, शस्त्र-प्रहार से कहीं अधिक घातक और मर्मभेदी हो सकता है, और प्राय: होता भी है। स्मरण कीजिए, महाभारत का वह प्रसंग जब द्रोपदी ने दुर्योधन का उपहास 'अंधे का अंधा' कहकर किया था, जिसके परिणाम में महाभारत जैसा भीषण युद्ध हुआ। रामचरित मानस का वह प्रसंग भी जब लक्ष्मण ने परशुराम को नसीहत देते हुए कहा है- वीर व्रती तुम धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।।<br />गालियों का एक दूसरा पहलू यह भी है कि वे मानव-जाति के परस्पर सम्बन्धों को अनायास उद्घाटित करती हैं। यूँ तो गालियाँ विश्व की लगभग सभी भाषाओं और बोलियों में कही-सुनी जाती हैं, किन्तु भारत में गालियों का अपना अलग ही अन्दाज है। भारत में गायी हुई गालियों का बुरा नहीं माना जाता। कदाचित् इसीलिए हमारे यहाँ विवाह-शादियों में तथा होली जैसे त्यौहारों पर गालियों को गाने की पुरातन प्रथा चली आ रही है। विवाह मेंं महिलाओं के द्वारा और होली पर पुरुषों के द्वारा गायी जाने वाली और उमंगमय गालियों का कोई बुरा नहीं मानता। जबकि अन्य किसी अवसर पर दी हुई किसी की भी गाली हमें गोली की तरह बींध कर रख देती है और क्षणभर में खून-खराबे की नौबत आ जाती है।<br />गालियों के अनेक प्रकार हैं। कुछ गालियाँ जाति-बोधक होती हैं, तो कुछ संबंध बोधक। कुछ गालियाँ मानव की विकलांगता से जुड़ी होती हैं, तो कुछ उसके स्वभाव से। कई गालियाँ मानव का जानवरों से तादात्म्य स्थापित करती हैं, तो कई गालियों में उसके बौद्धिक स्तर की धज्जियाँ उधेड़ दी जाती हैं। आज के दोनों शब्द इन संदर्भो में गाली की ही श्रेणी में आते हैं।<br />लीचड़ शब्द सबने सुना ही होगा, हो सकता कुछ का वास्ता लीचड़ों से पड़ा भी हो। शब्दकोश इसकी उत्पत्ति के बारे में कुछ नहीं कहता पर डॉ. हरदेव बाहरी के शब्दकोश में इसका अर्थ है- सुस्त, काहिल और नाकारा। बहुत से लोग लीचड़ कंजूस और चिपकू किस्म के आदमी को भी कहते हैं और कुछ घटिया व्यवहार करने वाले को। <br />इसके सारे अर्थ स्वीकार कर भी लें तो भी सवाल अपनी जगह है कि यह शब्द किस भाषा का है और आया कहां से? जानकर आश्चर्य होगा कि यह शब्द अंग्रेजी शब्द लीच (Leech)से बना है जिसका अर्थ है जोंक। यह पानी का एक कीड़ा है जो शरीर से चिपक कर खून चूसता है। यही वजह है कि अधिक चिपकने वाले आदमी को भी जोंक कहा जाता है। इसी लीच में हिन्दी का तड़का लगा कर नया शब्द से बना लीचड़।<br />इसी तरह एक शब्द है काँइयां। शब्दकोश में इसका अर्थ है चालाक, धूर्त या मक्कार। इस शब्द के पीछे एक रोचक कहानी है। बरसों से हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में यूपी और बिहार से लोग काम-काज के लिए आते रहे हैं। यूपी और बिहार से आये ये लोग आपस में बात करते हुए एक दूसरे को 'ऐ हो भइया' या 'कैइसन हो रे भइया' कह कर बुलाते-पुकारते थे, इसी वजह से उनका नाम 'भइया' चलन में आ गया।<br />ऐसे ही राजस्थान के लोग नौकरी और व्यवसाय के लिए बंगाल और असम जाते रहे हैं। ये राजस्थानी बंगाल और असम रहते हुए आपस में बात करते हुए 'काईं है, काईं करै है, काईं चाइजै' आदि बोलते रहते थे। इन राजस्थानियों के चालाकी के किस्से तो सारे देश में मशहूर हैं ही। यही वजह है कि वहां के लोग इन चालाक राजस्थानियों को 'काँई-काँई' बोलने के कारण काँइयां कहने लगे और धीरे-धीरे यह शब्द सारे देश में प्रचलित हो गया।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-73194770718186657542014-06-15T06:48:00.000-07:002015-01-04T07:58:10.305-08:00न बदमाश - न लुच्चा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<div style="text-align: justify;">
अक्सर चंचल और शोख बच्चों को बदमाश
कह दिया जाता है। बहुत सारे कारणों से बच्चे बदमाश नहीं हो सकते। बदमाश
फारसी भाषा का शब्द है जो दो अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है 'बद' और 'मआश'
(या माश)। बद का अर्थ है खराब या बुरा। यह शब्द बहुत से शब्दों के पहले
लगता है जैसे जिसकी नीयत खराब हो वह बदनीयत, जिसका चाल-चलन खराब हो वह
बदकार और जिसकी किस्मत खराब हो वह बदकिस्मत आदि। माश या मआश का अर्थ है
आजीविका या रोजी-रोटी का साधन। अक्सर मिलने पर काम-धन्धे के बारे में पूछ
लिया जाता है कि 'आपका जरिया-ए-मआश क्या है?' लिहाजा बदमाश का अर्थ वह आदमी
है जो ग़लत या अनैतिक तरीकों से आजीविका चलाता हो। इस लिहाज से छोटे और
मासूम बच्चे कभी बदमाश हो ही नहीं सकते। बदमाश उन्हें भी नहीं कहा सकता जो
लड़कियां छेड़ते हैं, या स्कूल-कॉलेज में हुड़दंग करते हैं।<br />
इसके साथ
ही 'बदमाशी' करने वाले बच्चों को शैतान भी कहते हैं। देखा जाता है कि
अक्सर मां-बाप अपने साल-छह महीने के बच्चों की शरारतों से तंग आकर शिकायत
करते हैं- 'आजकल यह बहुत शैतान हो गया है...' इस्लाम के अनुसार शैतान एक
फरिश्ता ही था जिसने अल्लाह की आज्ञा का उल्लंघन किया, इस वजह से उसका
बहिष्कार किया गया, तब से वह लोगों को पाप करने की ओर प्रवृत्त करता है।
यानी सभी बुरे काम और पाप करवाना शैतान का काम है, जिसके लिए शब्द है
कार-ए-शैतानी जो बाद में बिगड़कर कारस्तानी बन गया। सार यह कि भगवान के
समकक्ष ताकत रखने वाली कोई दूसरी शक्ति जो इंसान से भगवान की इच्छा के
विरुद्ध पाप करवाती है। इसके बाद भी क्या बच्चे शैतान हैं? क्या उनकी मासूम
सी जिद्द और नादानियां शैतानी हैं? <br />
अब इसी रौशनी में कारस्तानी को
भी ही देख लें। उर्दू का शब्दकोश तो इसे शामिल ही नहीं करता पर हिन्दी में
इसका अर्थ है, साजिश या चालबाजी। जोकि सही नहीं है क्योंकि कार-ए-शैतानी को
एकसाथ करने से कारस्तानी बन ही नहीं सकता और अर्थ के लिहाज से भी यह मूल
अर्थ से कोसों दूर है। <br />
बदमाश का एक और रिस्तेदार शब्द है- लुच्चा।
यथा लुच्चा-बदमाश। अर्थ के लिहाज से इन दोनों शब्दों का कोई मेल नहीं है,
क्योंकि लुच्चे का अर्थ शब्दकोश के अनुसार है- बदमाश, शोहदा, कमीना,
दुराचारी है पर आम बोलचाल में लुच्चे का अर्थ लिया जाता है- गंदी और अश्लील
बातें या इशारे करने वाला। राजस्थानी भाषा में तो अक्सर अश्लील बातें करने
वाले के बारे में कहा जाता है- यह बहुत लुच्ची-लुच्ची बातें करता है...।
जबकि यह दोनों ही अर्थ ग़लत हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार लुच्चा शब्द
संस्कृत के लोचन शब्द से बना है। यानी लोचन से काम लेने वाला, औरतों को
देखने या घूरने वाला हो गया लुच्चा। अंग्रेजी में इस हरकत को स्टेअर
(Stare) कहते हैं लेकिन लुच्चे के संदर्भ में सही शब्द है ओगॅल (Ogle)। असल
में यह तुर्की भाषा के शब्द लुच से बना है जिसका अर्थ है- नंगा, लम्पट और
भैंगा। हिन्दूस्तान में आकर लोचन और भैंगा पास-पास हो गए तो नया शब्द बना
लुचपना और लुचपना करने वाला लुच्चा।</div>
</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-10314398259310150022014-06-14T10:26:00.001-07:002014-06-16T01:35:02.223-07:00धणी खम्मा - घणी खम्मा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
राजस्थान में अभिवादन के लिए बहुत ही प्रचलित वाक्य है- खम्मा घणी। इसके जवाब में सामने वाला भी घणी घणी खम्मा कह देता है। इसकी देखा-देखी आजकल टीवी सीरिअल और फिल्मों में अभिवादन के लिए घणी खम्मा का प्रयोग किया जाता है जिसका जवाब सलामुन आलैकुम की तर्ज पर वालेकुम अस्सलाम यानी खम्मा घणी दिया जाता है। यह सीरिअल और फिल्मों में तो अज्ञानता की वजह से चल सकता है पर आश्चर्य तब होता है जब पढ़े लिखे लोग भी घणी खम्मा कह कर अभिवादन करते देखे-सुने जा सकते हैं। इतना ही नहीं रामदेव जी के बहुत सारे भजनों में ये शब्द बार-बार इन्हीं अर्थों में आते हैं। हद तो तब हो जाती है जब लोग अपने वाहनों पर बिना इसका अर्थ जाने यह लिखकर घूमते हैं- ''बाबै नै घणी घणी खम्मा"<br />
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह कितना गलत इस्तेमाल है। दरअसल देवनागरी में 'ध' और 'घ' दिखने में लगभग एक जैसे हैं इसलिए अकसर लोग धोखा खा जाते हैं। यही वजह है कि राजस्थानी के शब्द धणी (मालिक, पति) को घणी (ज्यादा, बहुत) पढ़ते और बोलते हैं। इस अज्ञानता की वजह से आजकल पढ़े-लिखे लोग भी कमअक्ली कर बैठते हैं। <br />
इसके सही इस्तेमाल है 'धणी खम्मा' या 'खम्मा धणी'। मूलतः यह दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है धणी जिसका अर्थ है मालिक या पति, और दूसरा शब्द है खम्मा जिसका अर्थ है क्षमा। दरअसल खम्मा क्षमा का ही अपभ्रंस है जो क्षेत्रीय भाषाओं में आकर क्षमा से खमा या खम्मा बन गया, ठीक वैसे ही जैसे क्षेत्र से खेत और क्षत्री से खत्री बने हैं। कुल शब्द का मतलब है मालिक क्षमा करें। इसके लिए अंग्रेजी का एक वाक्य एक्सक्यूज मी बिलकुल सटीक बैठता है। अदब और सभ्यता के लिहाज से कुछ भी कहने से पहले या किसी बातचीत के बीच में बोलने से पहले एक्सक्यूज मी, माफ़ कीजिए या क्षमा करें जैसे वाक्य बोले जाते हैं। राजस्थान में आज भी बड़े रसूख वाले लोगों, मंत्रियों और अधिकारियों को हुकुम, धणी या मायत कहने का चलन है। जैसे मुगलिया दरबारों में कुछ भी कहने से पहले पूछा जाता था कि- 'जान की अमान पाऊँ तो अर्ज करूँ...।' ठीक इसी तरह राजपूताना में भी राजा-महाराजाओं के दरबार में कुछ बोलने से पहले 'धणी खम्मा या खम्मा धणी' से बात आरम्भ करते थे। <br />
इन अर्थों की रौशनी में 'बाबै नै घणी घणी खम्मा' कितना हास्यस्पद लगता है? किसी को प्रणाम या नमस्कार के लिए भी घणी खम्मा का प्रयोग कितना उचित है? अब पता नहीं कब और कैसे यह वाक्य अभिवादन में बदल गया। <br />
अभिवादन के लिए एक और शब्द है 'मुजरा'। अरबी भाषा के इस शब्द का हिन्दी फिल्मों ने बहुत बेड़ा गर्क किया है। जिसकी वजह से हमने इसका एक ही अर्थ समझा है- कोठों पर तवायफों द्वारा किए जाने वाले नाच-गाने को मुजरा कहते हैं। दरअसल झुककर अभिवादन को ही मुजरा कहा जाता है, राजस्थानी भाषा में यह शब्द आज भी इसी संदर्भ में इस्तेमाल होता है। इस पर राजस्थानी में बहुत से गाने भी प्रचलित हैं। इस शब्द के तवायफों से जुडऩे का कारण आसानी से समझा जा सकता है। एक जमाना था जब बड़े-बड़े नवाब और राजा-महाराजा अपने बच्चों को तमीज, तहजीब और आदाब सिखाने के लिए तवायफों के यहां भेजते थे। तवायफें आदाब और तौर-तरीके सिखाती और नाच-गाने से पहले लगभग दोहरा होने की हद तक झुककर सलाम करती थी। यह सलाम या अभिवाद ही मुजरा है, जिसकी वजह से उनके नाच-गाने को मुजरा समझ लिया गया।<br />
मुजरे का एक अर्थ और भी है- किसी को दिए जाने वाले धन में से कटौती करना। राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के वो लोग जो खेती हिस्से या ठेके पर करवाते हैं वे इसे आसानी से समझ लेंगे क्योंकि उनका वास्ता मुजारे से पड़ा है। अपनी खेती को उपज के आधे, चौथाई या पांचवें हिस्से पर ठेके दिया जाना यहां आम बात है। जो आदमी इस तरह जमीन लेता है उसके बदले जो धन देता है उसमें से मुजरा काट कर जमीन मालिक को देता है उसे इसीलिए मुजारा भी कहते हैं। आम लोग नें इसे भी मजदूर को बिगड़ा हुआ रूप मजूर माना और फिर मुजारा मान लिया।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com28tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-51644429423850795982014-06-13T02:10:00.001-07:002014-06-13T02:10:10.681-07:00जुगाड़ की भाषा या भाषा का जुगाड़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7MczgsNny9Roivqn6o4hRwISL8QkoekG1bsH5roXHsv_QuZLWFKD-tFpuSTVUqZUGakA7-Rt3vmv7p1m6e8O_tU5tKbdGccpKtp7EgUN-gQzmo3yrXaoXBD3IF6SyrQVlvkyKVbMuMNe9/s1600/workshop.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7MczgsNny9Roivqn6o4hRwISL8QkoekG1bsH5roXHsv_QuZLWFKD-tFpuSTVUqZUGakA7-Rt3vmv7p1m6e8O_tU5tKbdGccpKtp7EgUN-gQzmo3yrXaoXBD3IF6SyrQVlvkyKVbMuMNe9/s1600/workshop.jpg" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
भाषा के मामले में दुनिया का हर आदमी जुगाड़ी है। वह शब्दों का जुगाड़ मुख-सुख के लिए ढूंढ ही लेता है। जैसे बहुत से पंजाबी अदरक को अदकर कहते हैं, कीचड़ को चिक्कड़ और चाकू को काचू बोलते हैं। इसी तरह उत्तरप्रदेश के बहुत लोग लखनऊ को नखलऊ कहते सुने जा सकते हैं। जब बात जुगाड़ की आ गई है तो बात करते हैं वर्कशॉप और वाहनों से संबंधित उन शब्दों की जिनके जुगाड़ मुख-सुख की वजह से तलाश लिए गए हैं।<br />इंजन नम्बर और चेसिस नम्बर के बारे में हम सबने सुना रखा है। उच्चारण व लिखने की दृष्टि से इंजन को एÓन्जिन बोला और लिखा जाना चाहिए पर आजकल इंजन या इंजिन हमें स्वीकार हो गया है। दूसरा शब्द है चेसिस। जिसे कुछ लोग चैसी या चेसिज या चेचिस भी कहते हैं। इस शब्द का सही उच्चरण है शैसे या शैस्इ। यह शब्द बोलने और लिखने दोनों के लिहाज से आजकल नजर ही नहीं आता। जब वर्कशॉप खुली हुई है तो कुछ और शब्दों पर भी बात भी कर लेते हैं। एक औजार है-जैक। यह वह औजार है जिससे वाहनों के टायर आदि बदलने के लिए वाहन को उपर उठाया जाता है। हम लोग इसे बहुत ही जल्दी में जेक बोलते हैं। जबकि इसे धीरे से खींचकर जैअ्क बोलना चाहिए। एक ही स्पैंलिग के साथ इस जैक के बहुत सारे अर्थ हैं जैसे- नाविक, मल्लाह, मजदूर, नौकर, गुर्गा, लौंडा, गुलाम, छोटा झंडा और कटहल आदि। ताश में भी जो गुलाम होता उसे भी जैक ही कहते हैं। <br />एक और बहुत ही प्रचलित शब्द है टोचन। यह स्टील, जूट या पलास्टिक की रस्सी होती है जिसकी मदद से एक खराब वाहन को दूसरे वाहन से बांध कर खींचकर ले जाया जाता है। सही शब्द है टो-चेन या टोइंग चेन। यह दो शब्दों से मिलकर बना है। टो यानी खींचना चेन यानी धातु की रस्सी। अब यह स्त्रीलिंग टो-चेन कब पुल्ंिलग टोचन हो गया पता ही नहीं लगा। हम में से बहुत से लोग टोचन को अंग्रेजी का शब्द नहीं मानकर जुगाड़ की तरह का एक जुगाड़ी शब्द ही समझते हैं। ऐसा समझने के पीछे एक तर्क भी है। हमारे मिस्त्री बहुत से औजारों और पुर्जों का नाम उनकी शक्ल देखकर रखते हैं। ये लोग रिचेट को कुत्ता, टेपेट को चिड़ी, इगनीशिअन कॉयल को घुग्गी, ओपनएंड स्पेनर को चाबी, सॉकेट को गोटी, प्लायर्स को जमूरा और नोज प्लायर्स को चूहा प्लास कहते हैं। हद यह कि साइकिल के गिअर टीथ खराब होने पर हम कहते हैं- इसके कुत्ते फेल हो गए। अब तो यह एक मुहावरा बन चुका है, कमजोर, आलसी और बड़बोले लोगों के लिए इसे अकसर प्रयोग में लाया जाता है। <br />अंत में बात करते दो और शब्दों की, पहला है बबलिंग। आमतौर पर कोई वाहन अगर उछल-उछल कर चल रहा हो या उसका टायर डगमगा रहा हो तो उसे बबलिंग कहते हैं। इसका सही उच्चारण है बोबलिंग या वैंबलिंग। दूसरा शब्द है-जैनुअन। जिसे हम जैनियन या जीनाइन भी कहते हैं। ऐसा नहीं है कि हम विदेशी भाषाओं के साथ ही ऐसा व्यवहार करते हैं, हम आपनी मातृ भाषा की भी इतनी ही इज्जत करते हैं।</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-81974131107342486412014-04-05T05:39:00.000-07:002014-06-12T23:04:30.490-07:00कहां है जंगलराज?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
जंगलराज आजकल एक ऐसा शब्द बन गया है जो दिन में दस बार सामने आता है। आम मान्यता के अनुसार जहां कानून-कायदे नाम की कोई चीज न हो उसे जंगलराज कहते हैं और सभ्य समाज में जो हरकतें स्वीकार नहीं हैं, उन्हें पाश्विकता कहते हैं। अब इससे बड़ा झूठ कोई दूसरा नहीं हो सकता। इसे समझने से पहले जंगल के कानून को समझना जरूरी है। जंगल में सबसे ताकतवर शेर को माना गया है। शेर ने अपनी इस ताकत के बल पर आज तक किसी शेरनी, बकरी, गाय या लोमड़ी से बलात्कार नहीं किया। उसने कभी भी अपनी भूख से ज्यादा शिकार नहीं किया। एक बार पेट भरने के बाद शेर अपने ऊपर खेलते हुए बकरी के बच्चे को छूता तक नहीं है। शेर ने कभी किसी दूसरे जानवर को सिर्फ इसलिए नहीं मारा कि वो किसी और प्रजाति का है। उसने हर बार सिर्फ भूख लगने पर ही किसी जानवर को मारा है। अब दूसरे जानवरों की बात करें तो कमोबेश यही नियम उनका भी है। <br />
अब अगर बात करें शारीरिक सम्बंधों और बलात्कार की तो जंगल में यह शारीरिक संबंध केवल सन्तान उत्पत्ति के बनाए जाता हैं, वह भी तब, जब मादा इसके लिए तैयार हो और आमंत्रित करे। वहां आनन्द और मौजमेले के लिए शारीरिक संबंधों की कोई जगह नहीं है। कुछ जीव तो ऐसे भी हैं जो अपने जीवनकाल में केवल एक ही बार ये संबंध बनाते हैं। अब यह कहां तक जायज है कि हम बलात्कारियों और अति-कामुक लोगों को हवस का भूखा भेडिय़ा कहते हैं?<br />
कोई भी जानवर जंगल को खाली देखकर उस पर कब्जा नहीं करता। जमाखोरी, मिलावट और कालाबाजारी नहीं करता, हत्ता के वो साथी जानवरों को इंसान के नाम पर गंदी और अश्लील गालियां भी नहीं निकालता। जबकि हम बात-बेबात अपने ही बच्चों को जंगली, गधा, उल्लू का पट्ठा, कुत्ता, सुअर और जाने क्या-क्या कहते हैं। जानवरों ने कभी यह दावा भी नहीं किया कि वो ईश्वर की श्रेष्ठ कृति हैं और न ही ऐसा कोई काम किया जिससे सारी जानवर जाति का सिर शर्म से झुक जाए। जानवरों ने हमेशा वही काम किया जिसके लिए प्रकृति ने उनको पैदा किया। जानवरों को कायदे-कानून में रखने के लिए न तो पुलिस है न ही सेना, न अदालत है, न जेल और न ही फांसी की सजा। <br />
इंसान की महानता देखिए कि सारी गंदगी और ग़लाज़त उसके अपने दिमाग में है और बदनाम बेचारे निरीह जानवरों को करता है। इंसान अपनी हर घटिया हरकत को जानवरों जैसा व्यवहार और पाश्विक कहकर अपना पल्ला झाड़ लेता है। जानवरों ने आज तक जितने इंसान मारे हैं वो या तो आत्मरक्षा के लिए या मजबूरी में भूख लगने पर मारे हैं। लेकिन इंसान ने जानवरों और इंसानों को क्यों मारा है यह आप-हम सभी जानते हैं। अब फैसला आप पर है कि आज के बाद जंगलराज को आप किस संदर्भ में प्रयोग करेंगे।</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-68339569091159696982014-04-04T07:17:00.004-07:002014-06-12T12:50:29.207-07:00वहशी, हैवान, दरिंदा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक जमाने पहले जो भाषा लुगदी जासूसी उपन्यासों की हुआ करती थी, वह आजकल हमारे अख़बारों और टीवी चैनल्ज की है। आज भाषा हमारे लिए महज सम्प्रेषण का माध्यम भर है, शब्दों का सही अर्थ जानने का तरीका नहीं। इसलिए हम जाने-अनजाने शब्दों का गलत-सही प्रयोग करते रहते हैं। दिल्ली और मुंबई बलात्कार कांड के बाद लगभग हर रोज पढऩे सुनने को जो तीन शब्द मिले वे थे- वहशी, दरिंदा और हैवान।<br />
इन शब्दों के अर्थ देखें तो हैरानी होगी कि जिन अर्थों में इन्हें प्रयोग किया जा रहा है, वे इनके अर्थ हैं ही नहीं। आमतौर पर वहशी का अर्थ उस खतरनाक किस्म के पागल से लिया जाता है, जो इंसानों को चीर-फाड़ दे और उनका खून तक पी जाए। जबकि शब्दकोष के अनुसार वहशी उस जानवर को कहते हैं जो आदमी या दूसरे जानवरों से डरता हो और उन्हें देखते ही घबरा कर भाग जाए। इस श्रेणी में हिरण, खरगोश और नीलगाय जैसे जानवर आते हैं। इसलिए भीड़-भाड़ से होने वाली घबराहट को वहशत कहा जाता है। <br />
दूसरा शब्द है दरिंदा। इस शब्द को भी हम वहशी की ही श्रेणी में ही रखते हैं। यानी चीरने-फाडऩे वाला खूंखार जानवर। हम इस शब्द के साथ कई बार वहशी का प्रयोग भी करते हैं। वहशी का अर्थ जानने के बाद किसी को भी वहशी-दरिंदा नहीं कहा जा सकता। जानते हैं कि दरिंदा किसे कहते हैं। सभी मांस खाने वाले जानवर दरिंदे कहलाते हैं। हर भाषा में जानवरों को उनकी आदतों या रहने के तरीकों के अनुसार नाम दिए जाते हैं, जैसे हिन्दीभाषी पानी में रहने वालों को जलचर, उडऩे वालों को नभचर और जमीन रहने वालों को थलचर कहते हैं। इसी तरह फारसी में उडऩे वालों को परिंद:, चरने वालों को चरिंद:, तथा मांस खाने वालों को दरिंद: कहा जाता है। इस तरह कुत्ते, बिल्ले जैसे सभी मांसभक्षी दरिंदे हैं। <br />
तीसरा शब्द है हैवान। इस शब्द का तुक चूँकि शैतान से मिलता है इसलिए हमारी नजर में हैवान निर्दयी, ख़तरनाक और बेहद ताकतवर किस्म का विचित्र प्राणी है। जबकि शब्दकोश के अनुसार सभी पशुओं, चौपायों, जानवरों यहां तक कि हर जानदार जो इंसान नहीं है को हैवान कहा जाता है, तथा उनके व्यवहार को हैवानियत। <br />
इन अर्थों की रौशनी में बलात्कारियों, हत्यारों और निर्दयी लोगों को हैवान, दरिंदा या वहशी कहना कितना सही है? दूसरी ओर इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि कोई भी जानवर कभी किसी से बलात्कार नहीं करता। वह अपनी ही प्रजाति की मादा की तरफ भी तब देखता है, जब प्रजनन काल हो। कोई भी जानवर अपने या किसी दूसरे जानवर के छोटे बच्चों के साथ कभी जबरदस्ती नहीं करता। शुक्र करना चाहिए कि जानवर हमारी इस बकवास को समझ नहीं सकते, वरना इस वाहियात सोच के लिए वे अब तक हमें चीर-फाड़ चुके होते। दरअसल आदमी से ज्यादा बेहतर, संवेदनशील और तरक्कीपसंद होने के साथ-साथ घटिया, ग़लीज़ और कमीना कोई दूसरा प्राणी इस पृथ्वी पर है ही नहीं। अपने आपको ईश्वर की श्रेष्ठ कृति बताने वाला यह प्राणी अपनी घटिया हरकतों को पाश्विक या जानवरों जैसा व्यवहार कहने में बिलकुल भी संकोच नहीं करता।</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/05368333314880197206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1780380362788515168.post-70512392239305541162014-04-03T21:57:00.004-07:002014-04-03T22:17:02.149-07:00शब्दों के बारे में दो शब्द<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मैं यह लेख किसी भाषा विज्ञानी की हैसियत से नहीं लिख रहा हूं, मैं भी भाषा का एक साधारण सा छात्र हूं जो उत्सुकतावश बंजारे शब्दों के साथ भाषा के इस जंगल में आ गया हूं। इस आवारगी में जो कुछ भी मिल रहा है उसे ही साझा करने का प्रयास कर रहा हूं। इस सफर को आरम्भ करने से पहले कुछ छोटी-छोटी बातें जो इस बंजारगी में शायद सहायक हों। <br />
दुनिया की सभी भाषाएं शब्दों से ही बनी हैं और प्राचीनकाल से ही शब्द इंसानों के साथ-साथ यात्रा करते रहे हैं। यही वजह है कि इंसान आते-जाते रहे हैं मगर उनके कुछ शब्द हमेशा के लिए हमारे बीच रह जाते हैं। ये शब्द स्थानीय भाषाओं में इस तरह घुल-मिल जाते हैं कि इन्हें बोलने वाले भी अपना ही मान लेते हैं। हमारी हिन्दी भी एक ऐसी ही भाषा है जिसमें दुनिया भर की दूसरी भाषाओं के हजारों शब्द मिल जाएंगे जिन्हें हम चाहकर भी अलग नहीं कर सकते। हिंदी भाषा में लगभग 2500 अरबी, 3500 फारसी और 3000 अंग्रेजी के अलावा तुर्की, पुर्तगाली, फ्रांसीसी, युनानी, चीनी, जापानी और रूसी जैसी विदेशी भाषाओं के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं के असंख्य शब्द शामिल हैं।<br />
उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के चार भेद हैं- तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी। तत्सम वे शब्द हैं जो संस्कृत से हिन्दी में बिना किसी परिवर्तन आए हैं जैसे- अग्नि, क्षेत्र, वायु, रात्रि, सूर्य आदि। तद्भव वे शब्द हैं जो रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं जैसे- आग(अग्नि), खेत(क्षेत्र), रात(रात्रि), सूरज(सूर्य) आदि। तथा देशज उन शब्दों को कहते हैं जो क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बने और प्रचलित हो गए जैसे- पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट आदि। विदेशी या विदेशज वे शब्द हैं जो विदेशी जातियों के संपर्क से हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। जैसे- स्कूल, अनार, आम, कैंची, अचार, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि। कुछ शब्द ऐसे भी हैं जिनके लिए या तो हिन्दी में शब्द हैं ही नहीं या उनकी जगह काम आने वाले हिन्दी शब्द चलन से लगभग बाहर हो चुके हैं। जैसे अंग्रेजी के पैन-पैंसिल, रेडिओ-टीवी, डॉक्टर-नर्स, बस, रेल, टिकट, मशीन, सिगरेट और साइकिल आदि।<br />
अरबी और फारसी के शब्दों को तो पहचाना ही मुश्किल है क्योंकि हम बचपन से अ-अनार पढ़ते आ रहे हैं। हालांकि हम चश्मे को ऐनक पढ़ते रहे हैं पर कहते आज भी चश्मा ही हैं। अब जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, औलाद, अमीर, ग़रीब, क़त्ल, कानून, क़त्ल क़ैदी, रिश्वत, औरत, फ़क़ीर आदि हजारों शब्द हैं जिन्हें पहचानना लगभग असंभव है। अब तुर्की के शब्द ही लें- कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा या फिर पुर्तगाली के- अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, बाल्टी, फीता, साबुन, तंबाकू जिनके पर्यायवाची ढूंढने में उम्र निकल जाएगी।<br />
मेरा मक़सद किसी को भी भाषा का विद्वान बनाना नहीं बल्कि उनके सही स्वरूप से परिचित करना और करवाना और उनकी उत्पत्ति के बारे में कुछ बातें करना भर है। जो शब्द हमारे बीच रच-बस गए हैं उन्हें बदलना या निकालना अब संभव नहीं हैं, फिर भी शब्दों का बंजारापन जारी है वे अपने लाव-लश्कर के साथ हमेशा आगे बढ़ते ही रहते हैं।</div>
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