Friday 4 April 2014

वहशी, हैवान, दरिंदा

एक जमाने पहले जो भाषा लुगदी जासूसी उपन्यासों की हुआ करती थी, वह आजकल हमारे अख़बारों और टीवी चैनल्ज की है। आज भाषा हमारे लिए महज सम्प्रेषण का माध्यम भर है, शब्दों का सही अर्थ जानने का तरीका नहीं। इसलिए हम जाने-अनजाने शब्दों का गलत-सही प्रयोग करते रहते हैं। दिल्ली और मुंबई बलात्कार कांड के बाद लगभग हर रोज पढऩे सुनने को जो तीन शब्द मिले वे थे- वहशी, दरिंदा और हैवान।
इन शब्दों के अर्थ देखें तो हैरानी होगी कि जिन अर्थों में इन्हें प्रयोग किया जा रहा है, वे इनके अर्थ हैं ही नहीं। आमतौर पर वहशी का अर्थ उस खतरनाक किस्म के पागल से लिया जाता है, जो इंसानों को चीर-फाड़ दे और उनका खून तक पी जाए। जबकि शब्दकोष के अनुसार वहशी उस जानवर को कहते हैं जो आदमी या दूसरे जानवरों से डरता हो और उन्हें देखते ही घबरा कर भाग जाए। इस श्रेणी में हिरण, खरगोश और नीलगाय जैसे जानवर आते हैं। इसलिए भीड़-भाड़ से होने वाली घबराहट को वहशत कहा जाता है।
दूसरा शब्द है दरिंदा। इस शब्द को भी हम वहशी की ही श्रेणी में ही रखते हैं। यानी चीरने-फाडऩे वाला खूंखार जानवर। हम इस शब्द के साथ कई बार वहशी का प्रयोग भी करते हैं। वहशी का अर्थ जानने के बाद किसी को भी वहशी-दरिंदा नहीं कहा जा सकता। जानते हैं कि दरिंदा किसे कहते हैं। सभी मांस खाने वाले जानवर दरिंदे कहलाते हैं। हर भाषा में जानवरों को उनकी आदतों या रहने के तरीकों के अनुसार नाम दिए जाते हैं, जैसे हिन्दीभाषी पानी में रहने वालों को जलचर, उडऩे वालों को नभचर और जमीन रहने वालों को थलचर कहते हैं। इसी तरह फारसी में उडऩे वालों को परिंद:, चरने वालों को चरिंद:, तथा मांस खाने वालों को दरिंद: कहा जाता है। इस तरह कुत्ते, बिल्ले जैसे सभी मांसभक्षी दरिंदे हैं।
तीसरा शब्द है हैवान। इस शब्द का तुक चूँकि शैतान से मिलता है इसलिए हमारी नजर में हैवान निर्दयी, ख़तरनाक और बेहद ताकतवर किस्म का विचित्र प्राणी है। जबकि शब्दकोश के अनुसार सभी पशुओं, चौपायों, जानवरों यहां तक कि हर जानदार जो इंसान नहीं है को हैवान कहा जाता है, तथा उनके व्यवहार को हैवानियत।
इन अर्थों की रौशनी में बलात्कारियों, हत्यारों और निर्दयी लोगों को हैवान, दरिंदा या वहशी कहना कितना सही है? दूसरी ओर इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि कोई भी जानवर कभी किसी से बलात्कार नहीं करता। वह अपनी ही प्रजाति की मादा की तरफ भी तब देखता है, जब प्रजनन काल हो। कोई भी जानवर अपने या किसी दूसरे जानवर के छोटे बच्चों के साथ कभी जबरदस्ती नहीं करता। शुक्र करना चाहिए कि जानवर हमारी इस बकवास को समझ नहीं सकते, वरना इस वाहियात सोच के लिए वे अब तक हमें चीर-फाड़ चुके होते। दरअसल आदमी से ज्यादा बेहतर, संवेदनशील और तरक्कीपसंद होने के साथ-साथ घटिया, ग़लीज़ और कमीना कोई दूसरा प्राणी इस पृथ्वी पर है ही नहीं। अपने आपको ईश्वर की श्रेष्ठ कृति बताने वाला यह प्राणी अपनी घटिया हरकतों को पाश्विक या जानवरों जैसा व्यवहार कहने में बिलकुल भी संकोच नहीं करता।

No comments:

Post a Comment